भारत में, प्रॉपर्टी टैक्स नगरपालिका प्राधिकरणों द्वारा अचल संपत्ति पर लगाया जाता है. इस टैक्स की गणना प्रॉपर्टी के मूल्य के आधार पर की जाती है. प्रॉपर्टी टैक्स की दरें और इसके निर्धारण का तरीका विभिन्न नगरपालिका प्राधिकरणों में अलग-अलग हो सकता है.

प्रॉपर्टी टैक्स क्या होता है?

प्रॉपर्टी टैक्स, जिसे कभी-कभी हाउस टैक्स के नाम से भी जाना जाता है, नगरपालिका प्राधिकरणों जैसे कि पंचायत, नगर पालिका या नगर निगम द्वारा अचल संपत्ति मालिकों पर लगाया जाने वाला एक प्रकार का टैक्स होता है. इसका उपयोग नगरीय क्षेत्र की स्थानीय नागरिक सुविधाओं जैसे कि सड़क, सीवेज सिस्टम, प्रकाश व्यवस्था, पार्क और अन्य बुनियादी सुविधाओं का रखरखाव करने के लिए किया जाता है. यह टैक्स आमतौर पर सभी प्रकार की अचल संपत्तियों पर लगाया जाता है, जिसमें भवन (आवासीय या वाणिज्यिक), संलग्न भूमि, और भूमि परिवर्तन शामिल हैं, लेकिन उन खाली भूखंडों पर, जिनके आस-पास अभी कोई निर्माण नहीं हुआ है, यह टैक्स लागू नहीं होता है.

प्रॉपर्टी टैक्स की गणना किस प्रकार से की जाती है?

प्रॉपर्टी टैक्स की गणना नगर निगम के अधिकारियों द्वारा प्रॉपर्टी के मूल्यांकन के अनुपात में की जाती है. प्रॉपर्टी टैक्स की गणना मुख्य रूप से तीन तरीकों से की जाती है:

  • कैपिटल वैल्यू सिस्टम (CVS): इस प्रणाली में प्रॉपर्टी के बाजार मूल्य के आधार पर टैक्स का निर्धारण किया जाता है. यह बाजार मूल्य सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है और प्रॉपर्टी कहां स्थित है, इस बात पर मुख्य रूप से निर्भर करता है. बाजार मूल्य को हर साल संशोधित और प्रकाशित किया जाता है. मुंबई शहर में इसी प्रणाली से टैक्स का निर्धारण किया जाता है.
  • एनुअल रेंटल वैल्यू सिस्टम या रैटेबल वैल्यू सिस्टम (RVS): इस प्रणाली के तहत, टैक्स की गणना प्रॉपर्टी के सालाना किराए मूल्य के आधार पर की जाती है. यहां किराया मूल्य से आशय वास्तव में किराए के रूप में वसूल की गई राशि नहीं है; बल्कि यह राशि नगरपालिका प्राधिकरण द्वारा प्रॉपर्टी के आकार, स्थान, परिसर की स्थिति, जाने माने स्थानों से निकटता, सुविधाओं आदि के आधार पर तय किया गया किराया मूल्य होती है. हैदराबाद और चेन्नई की नगरपालिकाएं इस प्रणाली द्वारा प्रॉपर्टी टैक्स का आकलन करती हैं.
  • यूनिट एरिया वैल्यू सिस्टम (UAS): इस प्रणाली में, प्रॉपर्टी के निर्मित क्षेत्र के प्रति इकाई/यूनिट मूल्य पर टैक्स लगाया जाता है. यह राशि प्रॉपर्टी के स्थान, भूमि की कीमत और उपयोग के अनुसार प्रॉपर्टी द्वारा दिए जाने वाले अपेक्षित रिटर्न के आधार पर तय की जाती है (प्रति वर्ग फुट प्रति माह), और फिर उसे इसके निर्मित क्षेत्र के साथ गुणा किया जाता है. दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु, पटना और हैदराबाद जैसी नगरपालिकाएं प्रॉपर्टी टैक्स गणना के लिए इस प्रणाली का उपयोग करती हैं.

प्रॉपर्टी टैक्स का भुगतान किस प्रकार से करें?

आप अपने क्षेत्र के नगर निगम (MC) ऑफिस में या कभी-कभी MC के साथ संबंधित बैंकों में अपने प्रॉपर्टी टैक्स का भुगतान कर सकते हैं. आपको अपनी प्रॉपर्टी की पहचान के लिए प्रॉपर्टी टैक्स नंबर या खता नंबर प्रदान करना पड़ता है. इन दिनों, भारत में अधिकांश नगरपालिका टैक्सों का भुगतान संबंधित नगरपालिका प्राधिकरण की वेबसाइटों पर ऑनलाइन किया जा सकता है, इस सुविधा से प्रॉपर्टी धारक के लिए टैक्स भरना आसान हो जाता है. कुछ नगरपालिका प्राधिकरण, कुछ विशेष कारकों जैसे कि स्थान, आयु, मालिक की नेट इनकम, प्रॉपर्टी के प्रकार आदि के आधार पर प्रॉपर्टी टैक्स के भुगतान में छूट देते हैं. इससे संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए और अपने टैक्स दायित्वों का निर्धारण करने के लिए स्थानीय प्रशासन से जानकारी लेना और उपलब्ध सूचानाओं का सत्यापन करना समझदारी भरा निर्णय है.

प्रॉपर्टी टैक्स का सालाना भुगतान करना होता है, इसके भुगतान में देरी होने पर देय राशि पर ब्याज के रूप में जुर्माना लगाया जा सकता है, जुर्माने की दर 2% मासिक तक हो सकती है. यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रॉपर्टी टैक्स के भुगतान का दायित्व प्रॉपर्टी के मालिक का होता है, ना कि उस में रहने वाले या उसे उपयोग करने वाले व्यक्ति का.

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