जब भी रिटायरमेंट के बाद के जीवन की बात आती है तो सबसे पहला विचार फाइनेंशियल सपोर्ट का आता है, मेडिकल, जीवनयापन और दूसरे खर्चों के लिए एक नियमित आय की कमी होने की चिंता सताने लगती है. अधिकतर वरिष्ठ नागरिकों के नाम कोई ना कोई प्रॉपर्टी होती है, लेकिन प्रॉपर्टी में तरलता न होने के कारण इसे नियमित आय के स्त्रोत में बदल पाना आसान नहीं होता है. इन सभी समस्याओं का समाधान 'रिवर्स मॉरगेज' की अवधारणा में है, 2007-08 के केन्द्रीय बजट में केन्द्र सरकार द्वारा पहली बार इस अवधारणा की स्थापना की गई थी.

सामान्य शब्दों में समझें तो रिवर्स मॉरगेज, नियमित मॉरगेज लोन के बिल्कुल विपरीत होती है. सामान्य मॉरगेज लोन में, व्यक्ति को प्रॉपर्टी खरीदने के लिए फाइनेंशियल संस्थान को मासिक किस्तों (EMI) का भुगतान करना पड़ता है, जबकि रिवर्स मॉरगेज उस वरिष्ठ नागरिक के लिए होती है जो पहले से ही घर या प्रॉपर्टी के मालिक होते है, पर उनके पास नियमित इनकम का कोई जरिया नहीं होता, ऐसी स्थिति में वह अपनी प्रॉपर्टी को किसी फाइनेंशियल संस्थान के पास गिरवी रख देता है, और बदले में वह फाइनेंशियल संस्थान उस व्यक्ति को एक नियमित राशि का भुगतान करता है. फाइनेंशियल संस्थान के पास उस व्यक्ति की मौत के बाद उसकी प्रॉपर्टी बेचने का अधिकार होता है, और इस प्रक्रिया में बची हुई रकम उस व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारियों को वापस दे दी जाती है.

भारत के परिप्रेक्ष्य में

इंडस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक, 2050 तक भारत की 20 प्रतिशत जनसंख्या वृद्ध होगी. तो इसका मतलब यह है कि सरकार और प्राइवेट संस्थानों, दोनों को इस तेजी से बढ़ती वरिष्ठ नागरिकों की जनसंख्या को सामाजिक सुरक्षा और हेल्थकेयर लाभ उपलब्ध करवाने के लिए रणनीति बनाने की आवश्यकता है. इसी के साथ इन तथ्यों में भारत में फाइनेंशियल संस्थानों द्वारा रिवर्स मॉरगेज के प्रचार प्रसार का व्यापक अवसर भी छिपा है.

रिवर्स मोरगेज क्यों अपनाएं?

रिवर्स मॉरगेज़ का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह वरिष्ठ नागरिकों को मानसिक शांति और सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करवाती है. किसी भी बुजुर्ग के लिए फाइनेंशियल रूप से आत्मनिर्भर होना, मेडिकल एमरजेंसी के समय पैसों की कमी ना होना और अपने बच्चों पर बोझ न बनने का विचार न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है बल्कि उनका आत्मसम्मान भी वापस लौटाता है. इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिकों को न तो अपना घर छोड़कर किराए के मकान में जाना पड़ता है और न ही रियल एस्टेट की दिन प्रतिदिन बदलती कीमतों के बारे में सोचना पड़ता है. कस्टमर को अपने जीवनकाल में यह लोन कभी नहीं चुकाना होता, और मिले हुए फंड्स के इस्तेमाल पर किसी प्रकार की पाबंदी नहीं होती.

इस अवधारणा के नुकसान या नकारात्मक पक्ष क्या-क्या हैं?

भारत में आज भी अधिकांश माता-पिता अपनी प्रॉपर्टी को अपने बच्चों के नाम ट्रांसफर करना पसंद करते हैं, प्रॉपर्टी को किसी फाइनेंशियल संस्थान को मॉरगेज पर दे देने का विचार उनके लिए काफी नया है. रिवर्स मॉरगेज में अन्य प्रकार की मॉरगेज के मुकाबले शुरुआती लागतें काफी अधिक होती हैं और यह लागतें कस्टमर के लिए प्रारंभिक लोन बैलेंस का भाग बन जाती है, और उसे इन पर ब्याज अदा करना पड़ता है. इसके अलावा एक और समस्या यह है कि रियल एस्टेट इंडस्ट्री में प्रॉपर्टी की वैल्यू, ब्याज की दरें और लोन की राशि पूरी लोन अवधि के दौरान बदलती रहती है.

निष्कर्ष

एक निश्चित आय प्राप्त करने के लिए अपने घर को बेचने या किराए पर देने की बजाय रिवर्स मॉरगेज़ पर दे देना एक सामाजिक रूप से स्वीकृत और नवीन विचार है. वर्तमान में, भारत में इस प्रोडक्ट के संबंध में जागरूकता का अभाव है, हालांकि अगर वरिष्ठ नागरिकों को इस बारे में सही ढंग से समझाया जाए और शिक्षित किया जाए तो उन्हें पारंपरिक लोन के मुकाबले रिवर्स मॉरगेज़ से मिलने वाले सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक लाभों के बारे में जागरूक किया जा सकता है. इसके अलावा इस प्रोडक्ट के माध्यम से वरिष्ठ नागरिकों की ज़रूरतों को सही तरीके से पूरा करने के लिए एक मज़बूत फाइनेंशियल और रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बनाने की भी आवश्यकता है.